Thursday, December 29, 2011

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"क़त्ल आशिकी में हुए..
इस कदर..

सिवा तेरे..
आता नहीं ..
कुछ नज़र..!"

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"नमक के डले..
सँभाल रखे हैं..
पुराने बक्से में..
तुम्हारी याद के साथ..
बरबस आ गए थे..
मेरे पास..!"

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"आँखें तर हैं..
अब तलक..
इनायत-ए-खुदा..

देखो..
अब तो रिहा करो..
मेरा अक्स..
जो तुमसे लिपटा पड़ा है..!"

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"रौशनी-ए-आफताब..
फीका..
महफ़िल-ए-हुस्न-ए-जमाल में..

चश्म-ए-मस्त..
बसर होती हो..
जब दिल के पायदान में..!"

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"खूबसूरती..जो अंतर्मन से निकल..आँखों के दायरे में समा गयी..
ऐसे चमकी नक्काशी..फ़लक से ज़मीं उल्फत की चादर रमा गयी..!!"

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"उनके लफ्ज़ आये इस कदर लेकर गुलिस्तान..
आया हो करीब मेहमान दफातन कोई..!"

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"दहशतगर्दी का छाया आलम ऐसा..
ना ठण्ड जमी ना पारा पिघला..
गुफ्तगू कर लें..आ ज़रा..रजाई में..
दुनिया समझे..
लिख रहे हैं ग़ज़ल..रात की तन्हाई में..!!"

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