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"रूह के मायने जान सकता नहीं हर कोई..
जिगरा हथेली पे रखना होगा..
रूह और देह की आज़माइश में..!!!"
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अंतर्मन में उठते द्वन्द को पृष्ठ पर उखेर कर भावनाओं को एक विचार-धारा मिलती है..बहुत समय के पश्चात कुछ पुरानी पुस्तकों में से सीधे निकले हैं ये शब्द अपने मूल-स्वरुप में..और कुछ शब्द अभी इस 'बेचैन धरातल' पर उतरे हैं..समय की माँग पर..!!!!!
Sunday, June 24, 2012
Friday, May 4, 2012
'मदमस्त..'
एक मित्र की फरमाइश पर..
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"तेरे टाइप का लिखते-लिखते..
शब्द थरथराते हैं..
हर शाम व्हिस्की के ग्लास..
मदमस्त टकराते हैं..
अड्डे पे अपने..ज़ालिम यादों के रहगुज़र..
जाने क्यूँ मंडराते हैं..
मिल कर लूटायेंगे..मनाएंगे मौज-मस्ती..
कभी टकीला..कभी जिन..
उफ़..ये दोस्ती के दीवाने..
देखो कैसे इतराते हैं..!!"
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"तेरे टाइप का लिखते-लिखते..
शब्द थरथराते हैं..
हर शाम व्हिस्की के ग्लास..
मदमस्त टकराते हैं..
अड्डे पे अपने..ज़ालिम यादों के रहगुज़र..
जाने क्यूँ मंडराते हैं..
मिल कर लूटायेंगे..मनाएंगे मौज-मस्ती..
कभी टकीला..कभी जिन..
उफ़..ये दोस्ती के दीवाने..
देखो कैसे इतराते हैं..!!"
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'दोस्त..'
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"इक-इक गाने का हिसाब मांगते हैं..
जाने कैसे अजीब दोस्त बनाते हैं..१..
क्यूँ करी थी दोस्ती तुमसे..सोचता हूँ..
तुम भेजो गाने..हम ल्य्रिक्स सजाते हैं..२..
वर्ड्स भी चाहिए एकदम रापचिक..
नहीं तो सुबह-शाम..शोर मचाते हैं..३..
मेरी कैटीगरी से हटकर हथकड़ पर लिखवाते हो..
कैसे दोस्त हो..गाने तो एकदम मस्त भिजवाते हो..४..!!"
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"इक-इक गाने का हिसाब मांगते हैं..
जाने कैसे अजीब दोस्त बनाते हैं..१..
क्यूँ करी थी दोस्ती तुमसे..सोचता हूँ..
तुम भेजो गाने..हम ल्य्रिक्स सजाते हैं..२..
वर्ड्स भी चाहिए एकदम रापचिक..
नहीं तो सुबह-शाम..शोर मचाते हैं..३..
मेरी कैटीगरी से हटकर हथकड़ पर लिखवाते हो..
कैसे दोस्त हो..गाने तो एकदम मस्त भिजवाते हो..४..!!"
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