अंतर्मन में उठते द्वन्द को पृष्ठ पर उखेर कर भावनाओं को एक विचार-धारा मिलती है..बहुत समय के पश्चात कुछ पुरानी पुस्तकों में से सीधे निकले हैं ये शब्द अपने मूल-स्वरुप में..और कुछ शब्द अभी इस 'बेचैन धरातल' पर उतरे हैं..समय की माँग पर..!!!!!
Sunday, June 24, 2012
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"रूह के मायने जान सकता नहीं हर कोई..
जिगरा हथेली पे रखना होगा..
रूह और देह की आज़माइश में..!!!"
सारगर्भित बात
ReplyDeletebhut hi badiya post likhi hai aapne. Ankit Badigar Ki Traf se Dhanyvad.
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