अंतर्मन में उठते द्वन्द को पृष्ठ पर उखेर कर भावनाओं को एक विचार-धारा मिलती है..बहुत समय के पश्चात कुछ पुरानी पुस्तकों में से सीधे निकले हैं ये शब्द अपने मूल-स्वरुप में..और कुछ शब्द अभी इस 'बेचैन धरातल' पर उतरे हैं..समय की माँग पर..!!!!!
Thursday, December 29, 2011
...
"आँखें तर हैं..
अब तलक..
इनायत-ए-खुदा..
देखो..
अब तो रिहा करो..
मेरा अक्स..
जो तुमसे लिपटा पड़ा है..!"
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